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बुधवार, 17 मई 2017

दर्द कभी छलके.....

दर्द कभी  छलके आँखों से  उसको रोना मत कहना
प्यार बसा है हर कतरे में उससे गजल कोई लिखना

लगता  है ख़ामोश  ख़ियाबां  तेरे  चले  जाने के बाद
साँसों  में  अटके  लम्हों  के साथ मुझे है अब चलना

अब  तक जो न  कह पाये थे  आज मुझे है कह देना
तन्हाई  में  दर्द  से  बढ़कर  कोई  नही  होता अपना

नर्गिस  पर  निसार  निहां  हो  जाने की  हसरत मेरी
काश  नवाज़िश  उनकी  होती फ़ुऱ्कत में कैसा रहना

देकर  ए    ईशाद    बज़्म   में   आने   से   रोका    उसने
अब तो गम-ए-दरिया में लगता दा'इम तक मुझको बहना

विक्रम

1-ख़ियाबां=पुष्पवाटिका 2-निसार=न्योछावर करना,फेकना3-निहां=गुप्त ,परोक्ष4-नवाज़िश=कृपा,दयालुता 5-फ़ुऱ्कत=जुदाई,विरह 6-ईशाद=आज्ञा,आदेश 7-दा'इम=अनंत,स्थायी

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