थक गया हूँ जिंदगी की मार से
बात थोडा कीजिए न प्यार से
रूबरू होकर भी तन्हाँ रह गए
अब कोई शिकवा नही है यार से
फिर नई राहों में चलकर देख लूँ
कितना मुश्किल जीतना है हार से
कारवाँ जब टूट करके है बिखरता
ख़्वाब बह जाते समय की धार से
बंद कर ली है पलक इस आश से
शायद कोई आ रहा उस पार से
विक्रम
बात थोडा कीजिए न प्यार से
रूबरू होकर भी तन्हाँ रह गए
अब कोई शिकवा नही है यार से
फिर नई राहों में चलकर देख लूँ
कितना मुश्किल जीतना है हार से
कारवाँ जब टूट करके है बिखरता
ख़्वाब बह जाते समय की धार से
बंद कर ली है पलक इस आश से
शायद कोई आ रहा उस पार से
विक्रम
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें