दर्द गाढ़ा हो रहा है, आसमां बदरंग है
टूटती हर सांस की आशा अभी सतरंग है
तुम कभी मिलने न आना,मौज का सागर नहीं
दो किनारों का यहाँ बस, दूर ही का संग है
दर्द को आगोश में लेकर सदा सोता रहा
अब ख़ुशी साथ पर,मेरा नजरिया तंग है
रात का घूँघट उठा कर,क्या किया मैने यहाँ
टूटते तारों से निकली, रोशनी से जंग है
जर्रे- जर्रे में तुम्हारे , नूर की चर्चा बड़ी
सबको छलने का तुम्हारा,कौन सा यह ढंग ह
विक्रम
टूटती हर सांस की आशा अभी सतरंग है
तुम कभी मिलने न आना,मौज का सागर नहीं
दो किनारों का यहाँ बस, दूर ही का संग है
दर्द को आगोश में लेकर सदा सोता रहा
अब ख़ुशी साथ पर,मेरा नजरिया तंग है
रात का घूँघट उठा कर,क्या किया मैने यहाँ
टूटते तारों से निकली, रोशनी से जंग है
जर्रे- जर्रे में तुम्हारे , नूर की चर्चा बड़ी
सबको छलने का तुम्हारा,कौन सा यह ढंग ह
विक्रम
दर्द को आगोश में लेकर सदा सोता रहा
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बहुत खूब ... लाजवाब हैं सभी शेर इस ग़ज़ल के आपकी ...