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बुधवार, 8 जनवरी 2014

अनाडी बन के आता,खिलाड़ी बन के जाता है



अनाडी बन के आता है,खिलाड़ी बन के जाता है
लगे  जो  दाग दामन में,उन्हें सब  से  छुपाता है

अगर इंसान  ये  होता, कभी  का मर  गया  होता
फकत दो वक्त की रोटी में,ये क्या-क्या मिलाता है

मेरा हमर्दद बन करके,मेरे ही आँख का आंसू
चुरा  करके  उन्हें बाजार  में,ये बेच  आता है

कभी उम्मीद बन जाता,कभी संगीन बन जाता
मेरी  ही  जेब पर हर  वक्त ये,पहरा  लगाता है

न  ये जाने  न  मैं  जानूं , न ये माने न  मैं  मानूं
वही किस्से यहाँ आकर,मुझे हर दिन सुनाता है

मैं अपनी भूख से डरता नहीं,बस नींद से डरता
मेरे सपनों में आ करके ,मेरी कमियां गिनाता है

है इसके शब्द में जादू,ये जादू का असर यारा
मेरे  ही  हाथ  से  ये क़त्ल ,मेरा  ही कराता है

कहीं पर आम बन जाता,कहीं पर ख़ास हो जाता
सड़क  पर  हर  खड़ा  बंदा , इसे नेता बताता है


विक्रम 




4 टिप्‍पणियां:

  1. मेरा हमर्दद बन करके,मेरे ही आँख का आंसू
    चुरा करके उन्हें बाजार में,ये बेच आता है
    ...वाह! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...हरेक हेर दिल को छू गया...

    जवाब देंहटाएं
  2. मैं अपनी भूख से डरता नहीं,बस नींद से डरता
    मेरे सपनों में आ करके ,मेरी कमियां गिनाता है

    bahut sundar gazal
    नई पोस्ट सर्दी का मौसम!
    नई पोस्ट लघु कथा

    जवाब देंहटाएं
  3. कहीं पर आम बन जाता,कहीं पर ख़ास हो जाता
    सड़क पर हर खड़ा बंदा , इसे नेता बताता है
    गहन अभिव्यक्ति.... सच कहती पंक्तियाँ

    जवाब देंहटाएं